वफ़ा ना रास आईं..... 💔 (14)
पहली बार जब ये खबर मेरे ससुराल में सभी को पता चलीं तो सभी का रियेक्शन बहुत साधारण सा ही था... किसी को कुछ खास फर्क नहीं पड़ा... ना इस बात से और ना मेरे ऊपर किए जा रहें अत्यधिक काम के दबाव से...। सब कुछ वैसा ही चलता रहा...। सवेरे पांच से लेकर रात बारह तक लगातार काम काम और सिर्फ काम...। पतिदेव का बर्ताव भी वैसा ही था.. कुछ बदलाव नहीं...। लेकिन पता नहीं क्यूँ मैं अब जीना चाहतीं थीं.. अपने पेट में पल रहीं नन्ही जान के लिए.... मैं सब कुछ चुपचाप करतीं रहीं..। वक्त अपनी रफ्तार से बढ़ता रहा... बीतते वक्त के साथ मुझ पर घर का काम और ज्यादा बढ़ा दिया गया.... ये तर्क देकर की काम करने से बच्चा नार्मल तरीके से पैदा होगा....। महीने बीतते गये...। मेरा आठवां महीना चल रहा था एक रोज़ मैं रोज़ की तरह कपड़े धो रहीं थीं... उस वक्त हमारे घर वाशिंग मशीन नहीं थीं... हाथ से ही कपड़े धोने पड़ते थें....। अचानक मुझे झुकने और वजन उठाने की वजह से पेट में असहनीय दर्द होने लगा...। मैं पूरी पसीने में तर बतर हो गई...। दर्द से कराहती हुई मैं वहां से उठकर पास में रखी स्टूल पर बैठी... और अपनी जेठानी को आवाज़ लगाने लगी....। वो उस वक्त रसोईघर में थीं...। आवाज सुनकर वो बाहर आई और मेरी हालत देख शायद वो थोड़ा घबरा गयीं.... उसने तुरंत मेरी सासु माँ को उठाया जो अपने कमरे में सो रहीं थीं...। मेरी सासु माँ आई और मुझे देखकर बोलीं.... अरे कुछ नहीं हुआ हैं... ये सब तो होता रहता हैं... अभी आठवां महीना ही शुरू हुआ हैं... अभी कहां कुछ होने वाला हैं.... ये सब काम से बचने का नाटक हैं... सिखाया होगा इसकी मरेली माँ ने.... बिना वजह मेरी नींद खराब कर दी.... जा जाकर कपड़े निपटा लें.... तेरे ये पैटरें मैं अच्छी तरह समझतीं हूँ...। इतना कहकर वो वापस सोने चलीं गयीं....।
कहते हैं प्रेगनेंसी के वक्त औरत बहुत ज्यादा इमोशनल हो जाती हैं.... मेरा भी ऐसा ही हाल था... सासु माँ की बातें सुन मैं दर्द से ज्यादा उनकी बातों से रोने लगी...। मेरी जेठानी भी वापस रसोईघर में चलीं गयीं...। मैं कुछ पल वहीं बैठी रोने लगी.... फिर हिम्मत कर वापस कपड़े धोने लगी....। जैसे तैसे करके कपड़े धो लिए...। लेकिन दर्द धीरे धीरे बढ़ता ही जा रहा था...। पता नहीं क्यूँ पर सासु मां की बातों का असर उस दिन जेठानी पर भी चढ़ गया और मुझसे कहा की आज कपड़े तु सुखाकर आजा....मुझसे ना हो पाएगा.....। मरती क्या ना करती...असहनीय पीड़ा में होने के बाद भी कपड़े सुखाने के लिए मैं छत पर बाल्टी लेकर जाने लगी...। एक हाथ मेरा पेट पर था और एक हाथ में कपड़ों से भरी बाल्टी....। अभी चार पांच सीढ़ी चढ़ी ही थीं की पता नहीं कैसे मेरा पैर फिसल गया और मैं धड़ाम से कपड़ों के साथ नीचे गिर गयीं....।
आवाज सुन कर मेरी जेठानी दौड़ी आई.... और बजाय मुझे उठाने के वो पहले कपड़े उठाने लगी और मुझे जली कट्टी सुनाने लगी....। मैं असहनीय दर्द में थीं.... पर मेरी ओर उसका ध्यान ही नहीं था....।
तभी हमारे घर के सामने वाले मकान में रहने वाली एक अध्यापिका भी आवाज सुनकर बाहर की तरफ़ आई... वो मुझे देखते ही चिल्लाई....वो मेरी जेठानी को बोलीं :- अरे पहले उसे तो उठा.... उसकी हालत तो देख...।
तब जाकर मेरी जेठानी को ख्याल आया की मैं भी गिरी हुई हूँ..। उसने मुझे सहारा देकर उठाना चाहा पर मैं खड़ी ही नहीं हो पा रहीं थीं... मेरे दाहिने पैर में सूजन आ चुकी थीं... थोड़ी सूजन तो इस दौरान सभी को होतीं हैं पर मेरा दाहिना पैर अत्यधिक सूज़ चुका था और थोड़ा मुड़ भी चुका था...। लंगडाते और सहारा लेते हुए मैं कुर्सी तक आई...। लेकिन मैं खड़ी नहीं हो पा रहीं थीं....। मेरी जेठानी फिर से मेरी सासु माँ को उठाने चली गई और इतने में सामने वाली अध्यापिका भी हमारे घर आ गयीं थीं...। उसने मेरी हालत देखते ही मेरी सासु माँ को कहा... इसके पैर में मोच आ गयीं हैं... इसे तुरंत हास्पिटल ले जाइये...।
उनके सामने मेरी सासु माँ के रंग बिल्कुल अलग ही हो गयें और उन्होंने ऐसा दिखाया जैसे उन को मेरी बहुत चिंता हो रही हो...। तुरंत मेरे पतिदेव को बुलावा भेजा गया...। तकरीबन आधे घंटे बाद पतिदेव आए और मुझे बजाय मेटरनिटी हास्पिटल ले जाने के मुझे हार्ड वैध के पास ले जाया गया जो हड्डियों का इलाज करते हैं....।
वहां कुछ जांच पड़ताल के बाद मुझे पंद्रह दिनों का प्लास्टर चढ़ाया गया.... ये कहकर की पैर की हड्डी अपनी जगह से खसक गयीं हैं.... चूंकि मैं प्रेग्नेंट थीं तो उन्होंने किसी भी तरह की दर्द निवारक दवाईयां नहीं दी और मेरे पतिदेव से कहा की मुझे तुरंत मेटरनिटी हास्पिटल ले जाया जाए....। पतिदेव ने वहां से बाहर आकर मेरी सासु माँ को फोन किया और मुझे वापस घर ले आए...। घर पर मुझे छोड़कर खुद उसी वक्त वापस अपने काम पर चले गए....। प्लास्टर को देख कर मेरी जेठानी को ना जाने क्या हुआ और मुझे इतनी जली कट्टी बातें सुनाई की मैं क्या ही बताऊँ...." आ गयी महारानी प्लास्टर चढ़वा कर.. काम से बचने के नाटक हैं... हमने तो बच्चे जैसे पैदा ही नहीं किए हैं... सिर्फ आराम करने के बहाने ढूंढती हैं....। अभी पड़ी रहेगी महारानी पलंग पर..... बच्चा ना हुआ कोई अजूबा हो गया....। कान खोलकर सुन ले... मैं तेरी गुलामी नहीं करने वाली हूँ.... चुपचाप जैसा काम बंधा हुआ हैं वैसा कर लेना.... खड़ी हो या ना हो मुझे कोई मतलब नहीं हैं इन सब से....। "
मुझे उस वक्त कुछ समझ नहीं आ रहा था की मैं कैसे घर के काम कर पाऊंगी....। चलना तो छोड़ो मैं तो खड़ी भी नहीं हो पा रहीं थीं....। प्रेगनेंसी की वजह से वजन भी बढ़ा हुआ था तो एक पैर पर जंप करके चलना भी मुश्किल था....। पेट का दर्द भी ज्यों का त्यों था ऊपर से ये पैर.... ना जाने क्यूँ पर आज ऊपरवाले पर अत्यधिक क्रोध आ रहा था... मन ही मन उसे भला बुरा कहें जा रहीं थीं...। मुझे ऐसी हालत में छोड़ सब अपने अपने कमरे में चल दिए...। कुछ देर मैं भी वही बैठी रहीं.... दर्द को बर्दाश्त करने की कोशिशें करतीं हुई..... आखिर कार मैं उठी ओर एक पैर पर उछलते हुए रसोईघर तक पहुंची....। बाहर जो स्टूल था उसे भी रगड़ते हुए साथ लेकर आई....। फिर उस पर बैठकर मैं नाश्ते की तैयारी में लग गयीं... क्योंकि उसका समय हो चुका था...। बैठे बैठे ही बर्तन साफ कर लिए... खाना भी बनाने लगी... और अंत में दोपहर को रसोईघर साफ भी कर लिया....। लंगड़ाते हुए ही मैंने घर की सफाई भी कर ली...। मुझे पता था किसी को कोई फर्क नहीं पड़ने वाला था.... करना तो मुझे ही हैं....। इसलिए दर्द सहते सहते करतीं गयीं....। लेकिन शाम होते होते मेरी कंडिशन बिगड़ती गयीं..... और दर्द की वजह से मैं चाय बनाते वक्त जमीन पर बेहोश होकर गिर गयीं....। शायद उस वक्त सभी को मेरा और मेरे पेट में पल रहें बच्चे का ख्याल आया ओर मुझे तुरंत हास्पिटल ले जाया गया....।
सबसे पहले जिस हास्पिटल में मेरा अब तक ट्रिटमेंट चल रहा था.... वहां ले जाया गया.... वहां मुझे दवाईयां देकर होश में लाया गया फिर जांच पड़ताल शुरू की गयीं.....। ग्लुकोज चढ़ाया गया....।
कुछ देर बाद ही डाक्टर ने कहा की बच्चा अंदर पलट चुका हैं.... उसके मुंह से पेट का वेस्ट पानी भीतर जा चुका हैं... जिसकी वजह से बच्चे की हार्ट बीट पर असर हो रहा हैं..... हमें तुरंत आपरेशन करना होगा.....आप जल्दी से फैसला ले... वरना कुछ भी हो सकता हैं....।
मेरी जेठानी ने घर पर खबर भिजवाई की क्या करना हैं....। पता नहीं मेरी सासु माँ को क्या सुझा और उन्होंने मुझे घर वापस ले आने को कहा....।
देखिए.... आप इसे अपनी रिस्क पर ले जा रहें हैं.... अगर आगे कुछ भी हुआ तो हमारी कोई जिम्मेदारी नहीं हैं....!
डाक्टर के इतना कहने के बाद भी मेरे पतिदेव और जेठानी मुझे घर वापस ले आए.. ।
मेरी सासु माँ एक ही जिद्द पकड़ कर बैठी थीं की आपरेशन तो नहीं करवाना हैं.... उन्होंने आठों महीने लड़का होने और नार्मल डिलीवरी होने के लिए ना जाने कितने घर के इलाज मुझ पर किए थे... भला उन्हें व्यर्थ कैसे जाने दे सकतीं थीं...।
उन सभी के दिमाग में पता नहीं क्या चल रहा था.... पर मेरे दिमाग में डाक्टर की कही बातें ही गूंज रहीं थीं की तुरंत आपरेशन करना पड़ेगा वरना कुछ भी हो सकता हैं.... मैं उस वक्त एक अजीब सा अकेलापन महसूस कर रहीं थीं.... पूरा खानदान हमारे घर जमा हो गया था.... लेकिन सब आपस में बातचीत और चर्चा करने में लगे हुए थे.... मेरी सिचुएशन पर किसी का कुछ ध्यान ही नहीं था....। शायद वो सभी वक्त निकाल रहें थे... उन सभी को ऐसा था की थोड़ा समय निकल जाएगा तो सब कुछ नार्मल हो जाएगा.....।
क्या वक्त निकालना सही था....?
क्या होगा आगे मेरे साथ...?
जानने के लिए अगला भाग अवश्य पढ़े...।
Babita patel
03-Jul-2024 08:43 AM
👍👍👍
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अपर्णा " गौरी "
13-Jun-2024 02:53 PM
बहुत बढ़िया ,वाकयी ऐसे लोग होते हैं ।
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